Saturday, December 21, 2019

देश को प्रधानमंत्री से आश्वस्ति चाहिए



शनिवार, 21 दिसम्बर की सुबह मीडिया की खबरें देखिए. एनआरसी और एसीसी का विरोध और फैला है. कई राज्यों में विरोध-प्रदर्शन हुए हैं. उत्तर प्रदेश के कई जिलों में विरोध फैला है. हिंसा बढ़ी है. उत्तर प्रदेश में आठ से लेकर 13 लोगों तक के मरने की खबरें हैं. करीब दो दर्ज़न जिलों में मोबाइल-इण्टरनेट सेवाएं बंद हैं. विश्वविद्यालय, स्कूल-कॉलेज बंद करने पड़े हैं और परीक्षाएं स्थगित.

नागरिकता संशोधन कानून बन जाने के बाद देश भर में एनआरसी लागू करने की भाजपा नेताओं की घोषणाओं का विरोध भाजपा के सहयोगी दल भी करने लगे हैं. नवीन पटनायक के बाद नीतीश कुमार ने भी साफ कह दिया है कि वे अपने राज्य में एनआरसी लागू नहीं करेंगे. रामविलास पासवान की पार्टी ने भी एनआरसी के विरोध में बयान दिया है.

अमेरिका से खबर है कि भारत की हाल की घटनाओं पर सरकार विरोधी राय बनने के कारण विदेश मंत्री जयशंकर को अमेरिकी संसदीय (कांग्रेस) समिति के साथ बैठक रद्द करनी पड़ी. विदेशी मामलों की इस उच्च स्तरीय प्रभावशाली समिति के साथ बातचीत महत्त्वपूर्ण थी. हुआ यह कि इस समिति की भारतीय-अमेरिकी मूल की एक सदस्य प्रमिला जयपाल ने बैठक के लिए प्रस्ताव रखा है कि भारत को कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने के बाद से लागू सभी संचार-प्रतिबंध और राजनैतिक नेताओं की बंदी समाप्त करनी चाहिए. जाहिर है कि जयशंकर इस प्रस्ताव पर चर्चा से बचना चाहते थे. इस प्रस्ताव के समर्थन में 19 और सांसद थे.

बैठक रद्द करने के बाद भारत के लिए और भी विपरीत स्थितियां पैदा हो गई हैं. जयशंकर के कदम को सांसद प्रमिला जयपाल की आवाज दबाने वाला माना गया है. अमेरिकी राष्ट्रपति पद की एक उम्मीदवार, महत्त्वपूर्ण डेमोक्रेट नेता एलिजाबेथ वारेन ने इस आशय की कड़ी टिप्पणी की है.  इसके बाद रातोंरात 10 और डेमोक्रेट सांसद प्रमिला के प्रस्ताव के समर्थन में आ गए हैं. अब तक कुल 29 अमेरिकी सांसदों का यह रुख भारत के लिए कूटनीतिक मुश्किलें बढ़ाने वाला है.

कश्मीर पर भारत सरकार के फैसले को अमेरिका समेत कई देशों में अलोकतांत्रिक और अल्पसंख्यक विरोधी कदम माना गया था. वहां के कई प्रमुखअखबारों ने मोदी सरकार के विरुद्ध तीखी टिप्पणियां लिखीं. नागरिकता संशोधन कानून बनाने और पूरे देश में एनआरसी लागू करने के भाजपा नेताओं के बयानों के बाद बहुत से देशों में मोदी सरकार के बारे में यह नकारात्मक राय बढ़ी है कि वह हिंदू राष्ट्र के एजेंडे की तरफ बढ़ रही है. इसे अल्पसंख्यक विरोधी और धर्मनिरपेक्ष भारत के खिलाफ माना गया है. पिछले कुछ दिनों में ऐसे कड़े आलोचनात्मक लेख विदेशी मीडिया में आए हैं.

जिस विविधता में एकता और बहुलतावाद के सम्मान की अद्वितीय विशेषता के लिए विश्व भर में भारत की सराहना होती रही है, उसके विपरीत विश्व जनमत बनने से मोदी सरकार भी निश्चय ही चिंतित होगी. देश में उसका जो भी एजेण्डा हो, विदेश में वह भारत की छवि बेहतर ही बनाए रखना चाहती है. कश्मीर पर फैसले के बाद इसके लिए उसने काफी लॉबीइंग भी की. कई देशों के दूतों को कश्मीर का दौरा यही दिखाने के वास्ते कराया गया था कि वहां सब कुछ सामान्य है.  

स्वाभाविक है कि घरेलू और विदेशी धरती पर उपजे ताज़ा हालात से मोदी सरकार पर दबाव बना है. इसी दबाव का परिणाम है कि केंद्रीय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने शुक्रवार को कहा कि देश भर में एनआरसी लागू करने की अभी कोई योजना नहीं है. सरकार के किसी भी स्तर पर अभी इस बारे में कोई विचार नहीं हुआ है. भाजपा के महासचिव राम माधव ने भी इण्डियन एक्सप्रेससे कहा है कि एनआरसी पर बात करना अभी ज़ल्दबाज़ी होगी. गृह मंत्री ने 2021 से इसे लागू करने की बात कही है. अभी इसके बारे में कोई विवरण उपलब्ध नहीं हैं.

दबाव दिखता है लेकिन सरकार का रुख कतई साफ नहीं है. सरकार में किसी ने निर्णयात्मक रूप से यह नहीं कहा है कि एनआरसी लागू नहीं किया जाएगा. जिन्हें यह आश्वासन देश को देना चाहिए वे प्रधानमंत्री मौन हैं. बल्कि, उन्होंने विरोध करने वालों को उनकी वेशभूषा से पहचाननेकी बात कह दी. यही नहीं, कुछ समय पहले केंद्र सरकार ने राज्यों को डिटेनशन सेण्टर’ (बंदी गृह) बनाने के लिए पत्र लिखा था. ऐसे ही सेण्टर असम में बनाए गए हैं, जहां नागरिकता रजिस्टर से बाहर होने वालों को रखा जाना है. इससे आशंका बढ़ती है कि मोदी सरकार देश भर में एनआरसी लागू करने की तैयारी कर रही है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी कई बार कह चुके हैं कि एनआरसीलागू करके रहेंगे.

इसलिए देश भर में आशंकाएं हैं और अशांति है. हिंसा बिल्कुल न हो, यह ज़िम्मेदारी सिर्फ विरोध-प्रदर्शनकारियों की नहीं है. सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की है. प्रधानमंत्री मोदी लोकप्रिय नेता हैं. जनता उनकी बात ध्यान से सुनती है और काफी बड़ा वर्ग उनका पक्का समर्थक है. इसलिए यह दायित्व प्रधानमंत्री का बनता है कि वे देश को एनआरसी के बारे में आश्वस्त करें. यह कहना पर्याप्त नहीं है कि नागरिकता कानून और एनआरसी से किसी भी भारतीय नागरिक को डरने की आवश्यकता नहीं है.   

यही सही समय है. मोदी को अपनी सरकार का रुख बिल्कुल साफ करना चाहिए ताकि जनता की आशंकाओं का समाधान हो. एनआरसी लागू नहीं करने की उनकी घोषणा से हिंसा रोकने में बड़ी मदद मिलेगी. कई सचेत वर्गों, विद्वतजनों और टिप्पणीकारों ने उनसे ऐसी अपील की है.


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