Friday, January 17, 2020

अवैध को वैध करती सरकारी नीतियां



सरकारें स्वयं अपनी ही नीतियों का कैसे उल्लंघन करती हैं, इसके प्रचुर उदाहरण सामने आते रहते हैं. एक तरफ स्मार्ट सिटी के सपने और घोषणाएं हैं, दूसरी तरफ पुरानी नीतियों में ऐसे संशोधन किए जा रहे हैं, जिनके स्मार्ट सिटी बन ही न सकें. स्मार्ट सिटी बनाने के लिए घोषित शहर अवैध निर्माणों से भरे पड़े हैं. निरन्तर अतिक्रमण और अवैध निर्माण होते जा रहे हैं. किसी शहर को स्मार्ट तो छोड़िए, तनिक व्यस्थित बनाने के लिए भी ये अतिक्रमण और अवैध निर्माण बड़ी बाधा हैं. इसे कैसे दूर किया जाए, पूर्व घोषित नीतियों पर सख्ती से कैसे अमल किया जाए, यह तय करने की बजाय अवैध को वैध घोषित करने की नीति बनाई जा रही है.

विभिन्न शहरों में विकास प्राधिकरण यह काम पहले से करते रहे हैं. वे पहले अवैध निर्माण होने देते हैं. साल दर साल होते अतिक्रमणों एवं अवैध निर्माणों से शहर पट जाते हैं, सड़कें संकरी हो जाती हैं, तालाब पाट दिए जाते हैं. पार्कों में ही नहीं, नाले-नालियों के ऊपर भी अवैध निर्माण कर लिए जाते हैं. पूरी-पूरी अवैध बस्तियां बस जाती हैं. बीच-बीच में कभी कोर्ट के आदेश से अवैध निर्माण और अतिक्रमण हटाने के दिखावटी अभियान चलते हैं. समस्या जस की तस ही नहीं, बढ़ती जाती है.

फिर एक दिन सरकारी विभाग खुद ही इस सब अवैध को वैध कर देता है. अवैध बस्तियों को सुविधायुक्त बनाने की अधकचरी और लगभग असम्भव-सी कोशिश की जाती है. राजधानी लखनऊ में ही ऐसी अनेक बस्तियां हैं जो यहां-वहां कब्जा करके बसीं और अब वैध घोषित हैं. चूंकि इन्हें  सुधारना और विकसित करना सम्भव नहीं होता, इसलिए वे गंदगी और सड़ांध से बजबजा रही हैं.

आवास-विकास विभाग की नई नीति विभिन्न प्राधिकरणों का यह काम और आसान करने वाली है. इसके पीछे तर्क भी बहुत बढ़िया दिया गया है. सरकार मान रही है कि इन अवैध निर्माणों में जनता का बहुत धन लग चुका है. इसलिए इन्हें ध्वस्त करना मानवीय दृष्टि से उचित और व्यावहारिक नहीं होगा. इसलिए इनसे शमन शुल्क लेकर इन्हें नियमित करार दिया जाएगा. शमन शुल्क लेने की नीति पहले से है. इस बार इस शुल्क भी कम किया जा रहा है.

क्या यह अवैध निर्माणों को साफ-साफ प्रोत्साहित करना नहीं है? पिछली नीति करीब दस वर्ष पहले बनी थी. उसका पालन हुआ होता तो अवैध निर्माण बढ़ते नहीं. वे बढ़ते गए, यह सरकार स्वयं मान रही है. आवास-विकास विभाग के पास ही करीब साढ़े तीन लाख अवैध निर्माणों की सूची है. इस सूची से बड़ी संख्या उनकी होगी जो गिने-देखे नहीं गए. इतनी बड़ी संख्या में अवैध निर्माण एक रात में नहीं हुए होंगे. तब विभाग और उसके प्राधिकरण क्या कर रहे थे? अब कहा जा रहा है कि इनमें बहुत धन लग चुका है. धन क्यों और किसने लगने लगने दिया? इसी इंतज़ार में कि एक दिन इन्हें ढहाना अव्यावहारिक और अमानवीय करार दिया जा सके?

अब इनको वैध करने के लिए शमन शुल्क घटा कर अवैध को वैध करना आसान बनाया जा रहा है. भविष्य में किए जाने वाले निर्माणों  के लिए अवैधकी परिभाषा भी बदली जा रही है. अभी तक जो अवैध है, वह वैध मानकर किया जा सकेगा.

नीति ही ऐसी बनेगी तो कैसे रुकेंगे अराजक-अव्यवस्थित निर्माण? स्मार्ट सिटी किसी और दुनिया में बनेंगे क्या? या स्मार्ट सिटी की परिभाषा भी इसी तरह बदली जाती रहेगी?        


(सिटी तमाशा, नभाटा, 11 जनवरी, 2020)

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