Friday, January 03, 2020

प्रियंका से ‘दुर्व्यवहार’ और कांग्रेसी आंदोलन


पिछले सप्ताह कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी लखनऊ में थीं. उन्होंने संशोधित नागरिकता कानून के विरोध में प्रदर्शन में भाग लिया. इसी दौरान जब वे अपना रास्ता बदलकर पिछले दिनों गिरफ्तार पूर्व आई जी एस आर दारापुरी के परिवार से मिलने जा रही थीं तो पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की. उसी दौरान उन्होंने आरोप लगाया कि एक पुलिस अधिकारी ने उनका गिरेबान पकड़ा और धक्का दिया जिससे वे गिर पड़ीं.  पुलिस अधिकारियों ने इस आरोप का खण्डन किया और उलटे प्रियंका गांधी पर सुरक्षा प्रोटोकोल तोड़ने का आरोप लगाया.

हम यहां इस आरोप-प्रत्यारोप के विवाद में पड़ने की बजाय यह रेकांकित करना चाहते हैं कि कांग्रेसियों ने इसके तुरंत बाद अपने आंदोलन का स्वर प्रियंका के साथ हुए दुर्व्यवहार को बना लिया. वे भूल ही गए कि उनका आंदोलन नागरिकता कानून के विरोध में हो रहा था, जो इस समय देश के सबसे ज्वलंत मुद्दों में है. कांग्रेसी कई दिन तक इसी मुद्दे पर शिकायतें करते और बयान देते रहे. सीआरपीएफ से लेकर मानवाधिकार आयोग तक गुहार लगाई गई है. नागरिकता कानून का मुद्दा उनसे पीछे छूट गया.

नेहरू-गांधी परिवार के प्रति कांग्रेसियों का देवता-भाव अद्भुत है. ऐसे कई अवसर पहले भी आए हैं जब वे सोनिया, राहुल और प्रियंका के प्रति अत्यधिक सम्वेदनशील दिखाई देते हैं. उनकी सुरक्षा का मुद्दा बहुत महत्त्वपूर्ण है. उसके साथ किसी भी तरह की लापरवाही गम्भीर विषय है लेकिन प्रियंका के साथ दुर्व्यवहार का मुद्दा सबसे बड़ा बना दिया जाना मुख्य आंदोलन के मुद्दे को हाशिए पर डाल देना नहीं हुआ?

कुछ मास पहले जब केंद्र सरकार ने इन तीनों नेताओं की सुरक्षा में एसपी जी हटाकर सीआरपीएफ तैनात करने का फैसला किया था तब भी कांग्रेसी इस मुद्दे पर संसद से सड़क तक उतर आए थे. उस फैसले के औचित्य पर जरूरी तकनीकी बहस अवश्य होनी चाहिए थी लेकिन इस मुद्दे पर कांग्रेसियों की उत्तेजना देख लगता था कि देश की प्रमुख विरोधी पार्टी के पास और कोई मुद्दा ही आंदोलन के लिए नहीं है.

कांग्रेसियों ने अपने आंदोलन की धार ही कुंद नहीं की बल्कि मीडिया के मुंह में भी नया मुद्दा डाल दिया. उनके आंदोलन की खबर प्रियंका से दुर्व्यवहार की अनावश्यक बहस में बदल गई. खबरों में यह नहीं आ पाया कि कांग्रेसी नागरिकता कानून के विरोध में सड़कों पर निकले थे. समाचार और बहस इस पर हुई कि प्रियंका के साथ दुर्व्यवहार हुआ या नहीं. प्रियंका का झूठ या सच, इसे मुद्दा बना दिया गया.

अक्सर लगता है कि उत्तर प्रदेश में सत्ता से तीस साल बाहर रहने के बावज़ूद कांग्रेसियों को विपक्षी दल के रूप में जनता के मुद्दों पर आंदोलन करना नहीं आया. उन्हें आंदोलित करने के लिए नेहरू-गांधी-परिवार से जुड़ा कोई निजी मुद्दा चाहिए होता है. कांग्रेसी गढ़ अमेठी पिछले चुनाव में ढह गया. राहुल को वहां हार देखनी पड़ी. इसकी भनक पहले से थी लेकिन कांग्रेसी अमेठी को बचाए रखने के लिए न तब सक्रिय हुए थे और न अब उस संसदीय क्षेत्र को वापस पाने की रणनीति बनाते दिखते हैं.

कांग्रेसियों को प्रियंका से बड़ी उम्मीदें है. उनमें इंदिरा की छवि वे देखते हैं लेकिन उन्हें आंदोलन के बीच धक्के खाते देख भीतर से विचलित हो जाते हैं. हो जाते हैं या दिखाते हैं, यह कहना मुश्किल है. प्रियंका को किसी भी परिवार से मिलने की आज़ादी होनी चाहिए और उन्हें गैर-कानूनी ढंग से रोकना अनुचित कहा जाएगा लेकिन प्रशासन के पास नेताओं को इस तरह रोकने के कई कानूनी बहाने होते हैं. कांग्रेसी नहीं जानते कि सभी विपक्षी दलों के बड़े नेताओं के साथ ऐसा होता है?

(सिटी तमाशा, नभाटा, 4 जनवरी, 2020)

   

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